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हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी, व्याकरण के महान् पंडित, ज्ञानि-शिरोमणि, परम बुद्धिमान् तथा भगवान् श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि हनुमान जी शिव के ग्यारहवें रुद्रावतार हैं। भगवान् शिव ही संसार को सेवाधर्म की शिक्षा प्रदान करने के लिए हनुमान के रूप में अवतरित हुए हैं। अंजनी व वानरराज केसरी को हनुमान जी के माता-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। भगवान् शिव का अंश पवनदेव द्वारा अंजनी में स्थापित होने के कारण उन्हें भी हनुमान जी का पिता कहा जाता है।
हनुमान जी देवी-देवताओं में चिरंजीवी हैं। शीघ्र प्रसन्न होनेवाले पवनपुत्र बल व बुद्धि के अनूठे संगम और हर तरह के संकट को हरनेवाले हैं। हनुमान का एक अर्थ है- निरहंकारी या अभिमानरहित। हनु का मतलब हनन करना और मान का मतलब अहंकार। अर्थात जिसने अपने अहंकार का हनन कर लिया हो। यह सभी को पता है कि हनुमानजी को कोई अभिमान नहीं था।
हनुमान जी भगवान् राम के अनन्य भक्त और अपने भक्तों के तारणहार हैं। जब तक पृथ्वी पर श्रीरामकथा रहेगी, तब तक हनुमान जी को इस धरा-धाम पर रहने का श्री राम से वरदान प्राप्त है। आज भी वे समय-समय पर श्री राम-भक्तों को दर्शन देकर उन्हें कृतार्थ करते हैं। प्रस्तुत पुस्तक में हनुमान जी की विभिन्न अमृत-तुल्य जीवन-गाथाओं को रोचकता से प्रस्तुत किया गया है, जो न केवल भक्त पाठकों का मनोरंजन करती हैं, बल्कि उनमें भक्ति-भाव भी भरती हैं।