Mansarovar - Part 8 with Audio by Premchand

Mansarovar - Part 8 with Audio by Premchand from  in  category
Privacy Policy
Read using
(price excluding 0% GST)
Author: Premchand
Category: General Novel
ISBN: 9781329908444
File Size: 232.60 MB
Format: EPUB (e-book)
DRM: Applied (Requires eSentral Reader App)
(price excluding 0% GST)

Synopsis

आप इस पुस्तक को पढ़ और सुन सकते हैं।
-------------------------------------

मानसरोवर - भाग 8

खून सफेद
गरीब की हाय
बेटी का धन
धर्मसंकट
सेवा-मार्ग
शिकारी
राजकुमार
बलिदान
बोध
सच्चाई का उपहार
ज्वालामुखी
पशु से मनुष्य
मूठ
ब्रह्म का स्वांग
विमाता
बूढ़ी काकी
हार की जीत
दफ्तरी
विध्वंस
स्वत्व-रक्षा
पूर्व-संस्कार
दुस्साहस
बौड़म
गुप्तधन
आदर्श
विरोध
विषम समस्या
अनिष्ट
शंका
सौत
सज्जनता का दंड
नमक का दारोगा
उपदेश
परीक्षा

-----------------------------------

जब नमक का नया विभाग बना और ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यवहार करने का निषेध हो गया तो लोग चोरी-छिपे इसका व्यापार करने लगे। अनेक प्रकार के छल-प्रपंचों का सूत्रपात हुआ, कोई घूस से काम निकालता था, कोई चालाकी से। अधिकारियों के पौ-बारह थे। पटवारीगिरी का सर्वसम्मानित पद छोड-छोडकर लोग इस विभाग की बरकंदाजी करते थे। इसके दारोगा पद के लिए तो वकीलों का भी जी ललचाता था। यह वह समय था जब ऍंगरेजी शिक्षा और ईसाई मत को लोग एक ही वस्तु समझते थे। फारसी का प्राबल्य था। प्रेम की कथाएँ और शृंगार रस के काव्य पढकर फारसीदाँ लोग सर्वोच्च पदों पर नियुक्त हो जाया करते थे। मुंशी वंशीधर भी जुलेखा की विरह-कथा समाप्त करके सीरी और फरहाद के प्रेम-वृत्तांत को नल और नील की लडाई और अमेरिका के आविष्कार से अधिक महत्व की बातें समझते हुए रोजगार की खोज में निकले। उनके पिता एक अनुभवी पुरुष थे। समझाने लगे, 'बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ॠण के बोझ से दबे हुए हैं। लडकियाँ हैं, वे घास-फूस की तरह बढती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पडूँ! अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। 'नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है। निगाह चढावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृध्दि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती हैं, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ।

Reviews

Write your review

Recommended